• धर्मेंद्र पैगवार भोपाल।

एक बार फिर पूरे देश के राजनीतिक प्रेक्षक और बड़े-बड़े जानकार सन्न हैं। पहले संघ फिर जनसंघ और भाजपा में जमीनी स्तर पर काम करने वाले नरेंद्र मोदी में आज भी भारत के नागरिकों को एक अपने जैसा आम आदमी दिखता है। किसी ने कल्पना नहीं की थी की स्टेशन पर चाय बेचने वाला एक बालक देश का प्रधानमंत्री बनेगा। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जमीनी स्तर पर काम करने वाले और सामान्य परिवारों के युवाओं को राजनीति में बड़े पद देने का सिलसिला जारी रखा है। चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए और राजकुमारों को तरजीह देने के बजाय मोदी को संघर्ष करके आए नेता ज्यादा पसंद हैं। मोदी की यही सोच मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनने के फैसले पर भी लागू हुई।
मोहन यादव के पिता की उज्जैन के मालीपुरा में पकोड़े की एक छोटी सी दुकान थी। इस दुकान से ही मोहन यादव का संघर्ष शुरू हुआ वह बचपन में संघ से जुड़े। धीरे-धीरे विद्यार्थी परिषद में सक्रिय होते चले गए। 1982 में वह माधव साइंस कॉलेज के सह सचिव और 1984 में विद्यार्थी परिषद के टिकट पर छात्र संघ के अध्यक्ष बने। विद्यार्थी परिषद में उज्जैन नगर के मंत्री वह 1986 में ही बन गए थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पहले मालवा प्रांत के मंत्री बने और फिर विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मंत्री भी। इसी बीच उनका संपर्क संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी से भी हुआ। सोनी के सानिध्य में डॉक्टर मोहन यादव ने संगठन का काम जारी रखा। यही वजह थी कि सन 2000 में उन्हें विक्रम विश्वविद्यालय कार्य परिषद का सदस्य बनाया गया। 2003 में भाजपा सरकार बनने पर 2004 में उन्हें उज्जैन विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया तो वह 2010 तक इस पद पर बने रहे। उन्होंने 2013 से 2023 तक लगातार तीन बार उज्जैन दक्षिण से चुनाव जीता। पिछली सरकार में वह उच्च शिक्षा मंत्री बने। उनको मुख्यमंत्री बनने के फैसले में सुरेश सोनी की निकटता भी काफी हद तक काम आई है। मोदी को भाजपा चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनने का फैसला संघ में सोनी के प्रस्ताव पर ही लिया गया था। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ही सोनी की राय को बेहद सम्मान देते हैं।
मुख्यमंत्री के लिए यादव का नाम भले ही चौंकाने वाला लगे लेकिन संगठन में उनकी प्रोफाइल इस पद के लिए किसी से कम नहीं है। यादव को मौका देकर भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह जता दिया है कि वह मध्य प्रदेश में नई लीडरशिप देना चाहता। संगठन में काम करने वाले ऐसे युवाओं को वह सत्ता में भागीदारी देकर अगले 20 से 25 साल के लिए निश्चित होना चाहता है। मोहन यादव पिछड़े वर्ग से आते हैं। संगठन को समझते हैं,3 साल मंत्री रहे हैं तो सरकार चलाने का अनुभव है। मालवा में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है 1990 में सुंदरलाल पटवा के बाद भाजपा ने 33 साल बाद मालवा से मुख्यमंत्री दिया है। मालवा खास तौर पर उज्जैन हिंदुत्व को लेकर भी संघ की प्रयोगशाला रहा है। लगभग 16 साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान थोड़े उदारवादी थे। संघ और भाजपा की नई पीढ़ी को यादव से योगी की स्टाइल में काम करने की उम्मीद रहेगी। 
इसलिए पिछड़ गए बाकी दावेदार...
विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद सर्वाधिक सक्रियता केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने दिखाई थी। शिवराज सिंह चौहान के बाद पहला नाम पटेल का ही था लेकिन उनकी और उनके समर्थकों की अत्यधिक सक्रियता दिल्ली को अच्छी नहीं लगी। 1 साल पहले मोदी मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल ने दिया संकेत दिए थे कि पटेल मोदी की पहली पसंद नहीं है। उन्हें राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार से हटा कर सिर्फ राज्य मंत्री बना दिया गया था। 
शिवराज, कैलाश और प्रहलाद की नई भूमिका क्या होगी?
नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष बना दिए गए हैं। अब निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री रहे प्रहलाद पटेल की क्या भूमिका रहेगी? कैलाश विजयवर्गीय तो पहले से ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव है। जातिगत समीकरण उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाने के पक्ष में लगते हैं। भाजपा की जानकार बताते हैं कि चौहान और पटेल को लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है। मोहन यादव को सरकार चलाने में कैलाश विजयवर्गीय का संगठन के साथ सहयोग मिल सकता है। दोनों के बीच अच्छी खासी अंडरस्टैंडिंग है।

न्यूज़ सोर्स : mohan yadav cm shocking decision pm narendra modi