चेन्नई । अब जानवरों के चमड़े और सिंथेटिक चमड़े के स्थान पर, भारतीय वैज्ञानिकों ने घास-पूस, फल-फूल से चमड़ा बनाने की नई विधि विकसित की है। दुनिया भर में सिंथेटिक चमड़े का उपयोग हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषण के लिए जानवरों के चमड़े और सिंथेटिक चमड़े का उपयोग खतरनाक होता जा रहा है। सिंथेटिक चमड़ा पेट्रो केमिकल से तैयार होता है। इसको विघटित होने में लगभग 500 साल का समय लग जाता है। इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है। 
 चेन्नई स्थित सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने गेहूं चावल और गन्ने के भूसे से चमड़ा बनाने में सफलता हासिल की है। चमड़ा बनाने के लिए पहले भूसे को पीस लिया जाता है। इसमें इको फ्रेंडली केमिकल मिक्स किया जाता है। इससे जो घोल तैयार होता है। उस घोल को एक ट्रे में रखकर उसे ओवन में सुखाया जाता है। सूखने के बाद चमड़ा तैयार हो जाता है। रंग और डिजाइन के लिए इसके सरफेस पर कलर कोटिग की जाती है। 
 इसके पहले नीदरलैंड में आम से चमड़े का उत्पादन किया गया था। भारत में भी इसका शोध शुरू हो गया था। भारत की वैज्ञानिक डॉक्टर तनिकाबेलन की टीम ने, इस साल आम से चमड़ा बनाने की सफल विधि खोज ली है। आम के गूदे से चमड़ा तैयार किया जाता है। इस साल के अंत तक आम, गेहूं,चावल तथा गन्ने के भूसे से तैयार चमड़ा और उसके उत्पाद बाजार में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाएंगे। पर्स, जूते,चप्पल, मनीबेग एवं अन्य उत्पाद में इस चमड़े का उपयोग होगा। यह पर्यावरण के अनुकूल भी होगा। भारत के हिसाब से यह पूर्णत शाकाहारी होगा।